Long time since the last post eh? Well I was working on a few scripts and tweaks, so was a bit busy.The Farewell of 3rd yearites led to a plethora of thoughts in my mind. I was remembering my school farewell, the great time we had in school and a sudden urge to go back to the good old days...Since I was missing school so much, I decided to post one of my Poems I wrote before leaving school.
The poem is in Hindi, and it is a bit long. So read further only if you have time :)PS:
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एक पौधा
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एक दाना, नन्हा यूँ गिरा पड़ा,
देखो पड़ी है कितनी धूल।
न जाने उगेगा कैसे पेड़,
कैसे होंगे इसके फूल॥
सोचा यूँ माली के पुत्र ने,
उठाकर उसे फिर धो दिया।
खोदा छोटा सा एक गड्ढा,
और उसमें उसको बो दिया॥
फिर प्रतिदिन उसके ऊपर,
वसुधा ने स्नेह भरपूर दिया।
रवि के प्रकाश ने उसको,
ज्ञान से परिपूर्ण किया॥
धीरे धीरे उस दाने से,
अंकुर फूटा, पौधा उगा।
माली के बालक के मन में,
खुशियों का संसार जगा॥
वसंत की एक संध्या को जब,
माली कर रहा था विहार।
सोचा इस पौधे को तो,
चाहिए होगी जगह अपार॥
उस गड्ढे से उसे निकाल,
लगाया उसे एक बाग में।
सोचा मन भी लगा रहेगा,
अन्य पौधों भी हैं साथ में॥
पर पौधा प्रसन्न न था,
बड़ी जगह उसे बिल्कुल न भायी।
माली के बेटे की उसको,
याद, बार - बार आई॥
अन्य पौधे थे तो मिलनसार,
पर उसको थी चिंता बस एक।
उसका अब क्या होगा हाल,
माली था एक, पौधे अनेक॥
पर जैसे जैसे समय बीता,
उसका यह भ्रम भी टूटा।
अपने सह-पौधों के संग,
उसने भी खूब मज़ा लूटा॥
वृक्षों ने फिर उसे दिखाये,
जीवन के भिन्न - भिन्न रंग।
साथ ही हँसा - खेला वह,
पौधों और माली के संग॥
यूँ धीरे धीरे वह बड़ा हुआ,
और उसमें एक फूल खिला,
मधुमक्खियों से उसको,
सभी रसों का ज्ञान मिला॥
आँधी और तूफा़न में उसको,
सह पौधों से मदद मिली।
धीरे - धीरे उसकी हर डाली,
सुंदर सुंदर फूंलों से खिली॥
भँवरे, पक्षी, पौधे, वृक्ष,
और उससे लिपटी बेल के संग।
ऐसा लगता था जैसे,
ये सब थे उसके ही अंग॥
पर जीवन सदा सुख से,
नही रहता हरा - भरा।
एक दिन आया माली,
लेकर दुखी सा चेहरा॥
माली बोला कि अब उस,
पौधे को यहाँ से जाना था।
निकट बन रहे भवन के,
सम्मुख उसे लगाना था॥
पौधों को उससे दूर किया,
भँवरों को भी दूर भगाया।
भीगी आँखों से माली ने,
उससे लिपटी बेल को हटाया॥
न जाने कैसा होगा वह स्थान,
सोचकर पौधा घबराया।
वृक्षों ने आशीर्वाद दिया,
और उसे तब यह समझाया॥
इस बगीचे में रहकर,
जो भी तुमने सीखा - जाना।
याद उसे सदा तुम रखना,
और जीवन में बढ़ते जाना॥
ये पौधे, माली, पक्षी, भँवरें,
याद आएँगे मुझे हरदम।
न कभी भूल पाऊँगा मैं,
डी.पी.एस. आर.के.पुरम॥
My end-sem Exams start from 1st May, so don't expect many posts during the first 2 weeks :)
PS: If you can't read the देवनागरी script, Leave a comment. I'll add an option to view it in Roman Script. :)